What is tandoor kand. Tandoor kand story तंदूर कांड की पूरी कहानी.

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साल बाद एक बार फिर तंदूर धधक उठा. 23 साल बाद एक फैसले ने एक बार फिर से उस तंदूर कांड को जिंदा कर दिया जिस तंदूर से निकली तपिश ने तब पूरे देश को तपा दिया था. पहली बार 23 साल पहले लोगों को पता चला था कि कभी किसी इंसान को तंदूर में भी भुना जा सकता है. जी हां, 23 साल पहले हुए उसी चर्चित तंदूर कांड के मुख्य आरोपी सुशील शर्मा की रिहाई हो गई है और वह जेल के बाहर आ गया है।. पर सज़ा से पहले आइए देखते हैं कि आखिर क्या है तंदूर कांड?

तारीख 2 जुलाई 1995. जगह गोल मार्केट, नई दिल्ली. रात के साढ़े आठ बजे अचानक एक सरकारी आवास से गोलियां चलने की आवाज आती है. पड़ोसियों को लगा कि शायद किसी ने पटाखे छोड़े हैं. लिहाज़ा कुछ देर बाद हर तरफ खामोशी छा जाती है. थोड़ा वक्त बीतता है. इसके बाद अचानक फ्लैट का दरवाजा खुलता है. एक साया पॉलीथीन में रखी कोई वजनी चीज घसीटता हुआ फ्लैट से बाहर निकलता है. बाहर एक कार खड़ी थी. साया पॉलीथिन को उठा कर कार की डिकी में रखता है और फिर डिकी बंद कर ड्राइविंग सीट पर बैठते ही कार को तेजी से भगा ले जाता है.
अंधेरा गहराता जा रहा था और सड़क पर धीरे-धीरे ट्रैफिक की भीड़ भी कम होती जा रही थी. कार चलाने वाला आईटीओ पुल पर पहुंचने के बाद तेजी से इधऱ-उधर देखता है. उसे शायद किसी खास मौके की तलाश थी. पर मौका शायद मिल नहीं रहा था। लिहाज़ा पुल के कुछ चक्कर काटने के बाद वो पुल के बीचो-बीच किनारे अपनी कार रोक देता है. कार का इंजिन बंद करता है और नीचे उतरता है.
दरअसल उसका इरादा कार की डिकी में रखी पॉलीथिन को पुल के नीचे यमुना में फेंकने का था. लेकिन पुल पर अब भी ट्रैपिक था. लोग लगातार आ-जा रहे थे. लिहाज़ा उसे मौका नहीं मिलता कि वो पॉलीथिन को यमुना में फेंक सके. उसे डर था कि कहीं किसी ने उसे पॉलीथिन फेंकते देख लिया तो उसकी पोल खुल जाएगी.
लिहाज़ा डर के मारे वो वापस कार में बैठता है और कुछ सोचने लगता है. तभी अचानक उसके दिमाग में बिजली की तरह एक और तरकीब कौंधती है. वो फौरन कार का रुख मोड़ देता है. अब कार वापस क्नॉट प्लेस की तरफ भागती है. क्नॉट प्लेस पहुंचते ही इस बार कार अशोक यात्री निवास के अंदर बगिया रेस्टोरेंट के पास जाकर रुकती है.
तब तक रात के दस बज चुके थे, रेस्टोरेंट में उस वक्त भी कुछ लोग बैठे खाना खा रहे थे. कार को रेस्टोरेंट में खड़ी करने के बाद कार से वही शख्स उतरता है और रेस्तरां के मैनेजर केशव के पास पहुंचता है. दरअसल कार चलाने वाला कोई और नहीं बल्कि दिल्ली यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट सुशील शर्मा था और ये रेस्तरां तब सुशील शर्मा का हुआ करता था. कार से उतरने के बाद घबराया सुशील शर्मा केशव से फौरन रेस्टोरेंट बंद करने के लिए कहता है. इसके बाद ग्राहकों के वहां से निकलते ही रेस्टोरेंट की बत्ती भी बुझा दी जाती है. पर रेस्टोरेंट का तंदूर अब भी जल रहा था.
क्नॉट प्लेस के इस इलाके में तंदूर का तंदूर का जलना रोजमर्रा की बात थी. लोग देर रात यहां खाना खाने आते थे. मगर उस रात तंदूर में जो होने जा रहा था वैसा शायद ही उससे पहले दुनिया के किसी तंदूर में हुआ था. तब तक रात के करीब साढ़े ग्यारह बज चुके थे.
सुशील शर्मा के कहने पर रेस्टोरेंट पूरी तरह खाली हो चुका था. सुशील शर्मा ने केशव से कह कर रेस्टोरेंट के बाकी कर्मचारियों को भी वहां से भेज दिया. अब अंदर सिर्फ रेस्टोरेंट का मैनेजर केशव और सुशील शर्मा थे. इसके बाद सुशील कार की डिकी से पॉलीथिन बाहर निकालता है. पॉलीथिन में एक महिला लाश थी.
सुशील लाश के बारे में केशव को झूठी-सच्ची कहानी सुनाता है पर ये नहीं बताता कि लाश किसकी है. इसके बाद केशव के साथ मिल कर वो रेस्टोरेंट के चाकू से लाश के टुकड़े करता है. फिर हर टुकड़े को उसी रेस्टोरेंट के जलते तंदूर में डालता जाता है. दरअसल तंदूर की गहराई और तंदूर का मुंह दोनों छोटा था. पूरी लाश एक साथ तंदूर में नहीं जा सकती थी. इसीलिए दोनों लाश के टुकड़े कर तंदूर में डाल रहे थे.
अब टुकड़ों में बंटी पूरी लाश तंदूर के अंदर थी. पर तंदूर ठीक से जल नहीं रहा था. तब आग की लौ तेज करने के लिए सुशील ने केशव से मक्खन लाने को कहा. मक्खन रेस्टोरेंट में पहले से था. अब दोनों मिल कर तंदूर में मक्खन डालने लगते हैं. तरीका काम कर जाता है. आग की लौ तेज होती जाती है. पर यहीं एक गड़बड़ भी हो जाती है. दरअसल तंदूर में मख्खन डालने से आग काफी तेज हो जाती है. तंदूर से उठती आग की तेज लपटें और धुएं के गुबार पर रेस्टोरेंट के बाहर दिखाई देने लगती हैं. तभी फुटपाथ पर सो रही सब्जी बेचने वाली एक महिला की नजर तेज लपटों पर पड़ती है.
उस महिला को लगता कि शायद रेस्टोरेंट में आग लग गई है. लिहाज़ा वह चीख कर शोर मचाने लगती है. महिला की चीख पास में ही गश्त कर रहे दिल्ली पुलिस के सिपाही अब्दुल नजीर के कानों तक पड़ती है. नजीर अनारो के पास आता है और फिर रेस्टोरेंट से उठती आग की लपटों को देख रेस्टोरेंट की तरफ दौड़ पड़ता है और इस तरह सामने आती है वहशीपन की वो रौंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी जो सालों तक सुनी और सुनाई जाती रहीं.
An- इस वारदात के अगले ही दिन यह खबर अखबार में सुर्खियां बनकर छा जाती हैं. फिर एक कांग्रेस नेता मतलूब करीम खुलासा करता है. कि वह लाश किसी और की नहीं बल्कि सुशील शर्मा की पत्नी नैना साहनी की थी. और वह यह भी दावा करता है कि नैना साहिनी का कत्ल सुशील शर्मा ने ही किया था.
रौंगटे खड़ी देने वाली इस वारदात के अगले रोज अखबारों के जरिए ये खबर दिल्ली यूथ कांग्रेस के एक नेता मतलूब करीम को मिलती है. तब मतलूब करीम सामने आकर पहली बार ये खुलासा करता है कि तंदूर में जिस महिला को भूना गया उसका नाम नैना साहनी है. सुशील शर्मा की बीवी नैना साहनी. सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी का कत्ल अवैध संबंध के शक होने पर किया था.
वो मतलूब करीम ही था जिसने पहली बार शक जताया कि नैना साहनी का कत्ल किसी और ने नहीं बल्कि खुद उसके पति सुशील शर्मा ने किया है. हादसे के बाद से ही सुशील शर्मा भी गायब हो चुका था. लिहाज़ा पुलिस का शक यकीन में बदलने लगा. पर सवाल ये था कि आखिर सुशील शर्मा ने अपनी ही बीवी का कत्ल क्यों किया? और कत्ल किया तो क्या. इस वहशीपन तरीके से उसकी लाश को मक्खन डाल-डाल कर तंदूर में क्यों जलाया? ज़ाहिर है इसका जवाब सुशील शर्मा के ही पास था. पर वो तब तक दिल्ली छोड़ चुका था.
फिर कुछ दिनों बाद बाद पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है. फिर इस दिल दहला देने वाली वारदात का खुलासा होता है. जिस नैना से सुशील ने लव मैरिज की थी. वो उसी नैना के टुकड़े कर तंदूर में झोंक चुका था. आख़िरकार उसी तंदूर कांड का मुजरिम फांसी के फंदे तक पहुंच कर भी फांसी से दूर रह गया. और 21 दिसबर 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट के रिहाई के आदेश के बाद सुशील शर्मा जेल से बाहर है.

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