Bundelkhand ki garibi, आखिर बुंदेलखंड की गरीबी का कारण क्या है ?

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          Bundelkhand ki garibi, आखिर क्यों नहीं बदल रही बुंदेलखंड की तकदीर?

लोकसभा चुनाव 2019 (lok sabha election) सर पर खड़े हैं ऐसे में जाहिर सी बात है सभी राजनीतिक दलों के नेता जिन्हे आप ने कभी नहीं देखा होगा वह भी ताल ठोकते हुए दिखाई दे रहे हैं ठोकें भी क्यूं न आप ही बताइए अगर चार महीने की मेहनत करने पर पांच साल राजाओं की तरह शासन करने को मिल जाए तो फिर गलत क्या है।  
               
चुनावी सीजन है तो सभी नेता वादे पर वादे किए जा रहे हैं क्योंकि चुनाव तो जीतना है। लेकिन हैरानी की बात यह है अगर इन वादों में से कुछ वादे भी पूरे हो गए होते तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती। खैर सभी जगह की बात तो हम आज नहीं कर सकते, लेकिन आज बात बुंदेलखंड (bundelkhand) की जरूर कर सकते हैं 4 लोकसभा सीटों वाले यूपी के बुंदेलखंड (bundelkhand) पर सब की पैनी नजर है।


केंद्र और राज्य में बैठी बीजेपी सरकार (BJP government) ने बुंदेलखंड(bundelkhand) में वादों की झड़ी लगा दी है यहां की जनता को खूब ख्याली पुलाव भी खिलाया लेकिन वादे जमीनी स्तर पर कहीं भी नजर नहीं आ रहे कुल मिलाकर कहें तो एक बार फिर बदहाल बुंदेलखंड(bundelkhand) के सहारे राजनीतिक पार्टियां सत्ता के सिंहासन पर बैठने की जुगत में लग गई है।

इतिहास गवाह है पिछले लोकसभा चुनाव(lok sabha election) और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जितनी सीटें बुंदेलखंड से मिली थी शायद इससे पहले कभी किसी पार्टी को नहीं मिली। लेकिन अब उम्मीद बिल्कुल न के बराबर है। बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 13 जिलों में फैला हुआ हैउत्तर प्रदेश के हिस्से के बुंदेलखड में झांसीललितपुरजालौनबांदाहमीरपुरमहोबा और चित्रकूट आता है।

गरीबी बेबसी भुखमरी के मारे बुंदेलखंड ने कई सियासत दारों की तकदीर बदल दी। अफसोस सबसे बड़ा इस बात का है हमारे नेता कभी बुंदेलखंड की तस्वीर नहीं बदल पाई और अब एक बार फिर इसी बदहाल बुंदेलखंड की बैसाखी के सहारे सियासत दार सत्ता के सिंहासन पर चढ़ने की जुगत में लगाए हुए हैं।

किसानों की आत्महत्या बेरोजगारी गरीबी भुखमरी क्या क्या बताऊं ऐसी कोई समस्या नहीं है जो बुंदेलखंड में ना पाई जा सके, खैर उत्तर प्रदेश के साथ और मध्य प्रदेश के 6 जिले बुंदेलखंड में आते हैं पानी पलायन बेरोजगारी भुखमरी रोजगार किसानों की आत्महत्या यह सब बुंदेलखंड की पहचान बन चुके है।

यहां आठ लोकसभा क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय देश की औसत आय से आधी है। साक्षरता दर देश के औसत से 7% कम यानि 68% पर टिकी हुई है। यहां कुल 45 से 50% इलाका ही सिंचित है गांव से आधी आबादी पायल कर चुकी है।

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की समस्याएं कई दशकों से जस की तस है पानी और पलायन इन दोनों बड़ी समस्याएं के बीच यहां 2019 के आम लोकसभा चुनाव होंगे।

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में सभी सीटें बीजेपी ने जीती थी। जालौनटीकमगढ़ दमोह जैसी सीटें लगातार चार पांच बार से बीजेपी ही जीत रही है, और यहां के विकास की बात करें तो न के बराबर है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में लोग स्थानीय सांसदों की निष्क्रियता से नाराज है और हालात यह है कि आधे से ज्यादा लोग अपने सांसद को पहचानते तक नहीं है।

सत्ता के पांच साल लगभग बीत चुके हैं। यकीन मानिए कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां सांसद साहब अपना थोभड़ा तक दिखाने नहीं गए हैं तो काम क्या किया होगा आप खुद समझ सकते हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि जनता इस बार किसे चुनेगी। क्योंकि इस बार सपा-बसपा ने गठबंधन करके बीजेपी की नींद हराम कर दी है। 

मेरे हिसाब से बुंदेलखंड की गरीबी का कारण हम खुद है. क्योंकि चुनाव के वक्त विकास और रोजगार के मुद्दों पर वोट दिया ही नहीं जाता। यहां 40%आबादी एससी-एसटी की है तो 35% ओबीसी है। सवर्ण 20% से भी कम हैंलेकिन बहुत प्रभावी हैं। जिस भी पार्टी की तरफ इनका हांथ चला जाता है समझो उसकी जीत लगभग पक्की हो जाती है।

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