एक ऐसा डकैत
जिसने अकेले 400 पुलिस वालों से 52 घंटे तक लगातार मुठभेड की थी। एक ऐसा डकैत जिसे
पकडने के लिए पुलिस ने उसे घेरकर पूरे गांव में आग लगा दी फिर भी वह लगातार
मुठभेड़ करता रहा। एक ऐसा डकैत जिसके मुठभेड का लाइव पूरी दुनिया ने देखा था। एक
ऐसा डकैत जिसने अपनी बहन की इज्जत का बदला लेने के लिए डाकू बना। एक ऐसा डकैत
जिसने पहली बार खाकी को सबसे ज्यादा हताश कर दिया था। नाम है घनश्याम केवट। इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको डाकू घनश्याम केवट के एनकाउंटर की पूरी
कहानी बताएंगे।
पाठा के बीहड़ों
से लेकर तराई के अनसुलझे रास्तों पर आज तक खौफ के कई ऐसे सौदागर हुए हैं चाहे वह
शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ हो या अम्बिका पटेल उर्फ ठोकिय। इन सभी को कानून की भाषा
में डकैत कहा जाता है। कुख्यात ददुआ ठोकिया रागिया बलखड़िया और बबुली कोल ने यदि
बीहड़ों में अपनी दहशत का साम्राज्य कायम किया है तो तराई के इलाकों में खूंखार
घनश्याम केवट ने भी खौफ की इबारत लिखी है। घनश्याम केवट ने तो दस्यु इतिहास के
पन्नों में कभी न भूलने वाली उस मुठभेड़ को अंजाम दिया जिसने देश के सबसे बडे राज्य
यूपी की पुलिस के पसीने छुड़ा दिए थे। साल 2003 था घनश्याम की बहन के साथ गांव के
युवक ने रेप किया। फिर घनश्याम ने इसकी शिकायत पुलिस वालों से की लेकिन पुलिस ने
रिपोर्ट दर्ज नहीं की। इसके बावजूद वह कई महीनों तक पुलिस थानों के चक्कर काटता
रहा। फिर भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उसने बंदूक उठाने का फैसला किया
और डाकू शंकर केवट के गिरोह में शामिल हो गया। फिर कुछ महीनों के बाद ही उसने बहन
की इज्जत लूटने वाले व्यक्ति की हत्या कर दी। फिर साल 2005 में शंकर केवट की मौत
हो गई जिसके बाद घनश्याम केवट गिरोह का सरदार बन गया। सरदार बनते ही घनश्याम केवट
ने क्षेत्र में तबाही मचानी शुरू कर दी, हत्या लूट अपहरण उसके दाये हांथ का काम बन
चुका था। अब हम आपको उसके एनकाउंटर की कहानी बताते हैं।
16 जून 2009 का वह दिन था सुबह के 11 बज रहे थे। तभी चित्रकूट जनपद के राजापुर थाना क्षेत्र के जमौली
गांव में पुलिस की गाड़ियों ने सायरन बजाते हुए इंट्री की, सहमे ग्रामीणों को यह अंदाजा भी न था कि अगले तीन दिनों तक
उनकी जिंदगी में क्या तूफ़ान आने वाला है। दरअसल पुलिस को सूचना मिली थी कि गांव
में 50 हजार का इनामी डकैत
घनश्याम केवट छिपा हुआ है। पुलिस की यह सूचना बिल्कुल सही थी उस दिन घनश्याम गांव
में ही बैठा था। डकैत को घेरने के लिए सिर्फ कुछ थानों की फ़ोर्स को बुलाया गया लेकिन
पुलिस को भी आने वाले खौफनाक मंजर का इल्म नहीं था। धीरे धीरे पूरे गांव में
सुगबुगाहट तेज हो गई। तभी डाकू घनश्याम को भी पुलिस का पता चल गया।
पुलिस की मौजूदगी
की भनक लगते ही डकैत घनश्याम केवट ने गांव के एकमात्र दो मंजिला पक्के मकान के
सबसे ऊपर वाले कमरे में खुद का ठिकाना बना लिया और सैकड़ों कारतूस व् 315 बोर की फैक्ट्री मेड राइफल तथा एक बोतल पानी के
सहारे खाकी से मुठभेड़ करने को मुस्तैद हो गया।
घनश्याम ने मकान
मालिक को राइफल की नोक पर मकान से बाहर निकाल दिया था। खास बात ये थी कि उस कमरे
की खिड़की से घनश्याम को गांव का लगभग हर वो कोना दिख रहा था जहां जहां खाकी की
चहलकदमी हो सकती थी। इसी कमरे में मौजूद रहकर घनश्याम केवट ने तीन दिनों तक खाकी
पर ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात की जिसने खाकी को भी बैकफुट पर ला दिया।
अब दोपहर के 1 बजने वाले थे। पुलिस चारो तरफ से घनश्याम को
घेर लेती है। खाकी की मंशा भांपते हुए डकैत घनश्याम केवट ने पहले ही ताबड़तोड़
फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस को संभलने का मौका न मिला, डकैत के छिपने की लोकेशन ऐसी थी कि उस तक पहुंच पाना लगभग
असम्भव था। दस्यु घनश्याम रात होने तक रुक कर पुलिस को गोलियों का निशाना बनाता
रहा। घनश्याम के खौफनाक इरादों को भांपकर उच्चाधिकारियों ने भारी मात्रा में पुलिस
बल बुलाने का फैंसला किया।
तब तक सुबह हो गई
थी। 17 जून को चित्रकूट बांदा
हमीरपुर कौशाम्बी से भारी संख्या में पुलिस फ़ोर्स मंगाई गई। ददुआ ठोकिया जैसे
खूंखार डकैतों को ठिकाने लगाने वाली एसटीएफ टीम को भी घनश्याम से निपटने के लिए
लगाया गया। यानि वह टीम भी बुला ली गई जिसने ददुआ पटेल और ठोकिया पटेल जैसे खूंखार
डाकुओं का एनकाउंटर किया था।
इधर लगातार डाकू
और पुलिस के बीच गोलीबारी हो रही थी। इसके बावजूद भी डाकू घनश्याम के हौसले बुलंद
थे। डकैत घनश्याम की गोलियों की बौछार के आगे पस्त हो रही पुलिस ने एक अजीब फैसला
लिया। डकैत को कमरे से बाहर निकालने के लिए पूरे गांव में आग लगा दी गई ग्रामीणों
को गांव से बाहर निकाल दिया गया। जिस जगह पर वो पक्का मकान स्थित था जिसमें दस्यु
घनश्याम छिपा हुआ था उसके आस पास झूग्गी झोपडी के आशियाने ही थे जिससे पुलिस को यह
तकाज़ा हुआ कि यदि आग लगा दी जाएगी तो लपटों से डरकर डकैत घनश्याम बाहर निकलेगा और
उसका एनकाउंटर कर दिया जाएगा।
इसे उस डकैत की
दिलेरी कहें या कुछ और कि आग की लपटों के बीच वो लगभग 8 घण्टे तक घिरा रहा सिर्फ
घिरा नहीं रहा उसने पुलिस वालों को निशाना भी बनाया । घनश्याम केवट लगातार ताबड़तोड़
फायरिंग कर रहा था।
17 जून से लेकर 18
जून 2009 के बीच दस्यु घनश्याम की गोलियों का निशाना बनते हुए खाकी
के 4 जाबांज शहीद हो गए जिनमें
पीएसी के कम्पनी कमांडर बेनी माधव सिंह एसओजी सिपाही शमीम इक़बाल और वीर सिंह शामिल
थे। दस्यु की गोलियों से तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक पीएसी वीके गुप्ता और
उपमहानिरीक्षक सुशील कुमार सिंह सहित 6 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए।
दस्यु घनश्याम से
टक्कर लेने के लिए तत्कालीन एडीजी बृजलाल आईजी जोन इलाहाबाद सूर्यकुमार शुक्ला
सहित खाकी के कई लम्बरदार जमौली गांव पहुंचे लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली।
उधर लखनऊ में तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह न्यूज चैनलों पर हो रहे मुठभेड़ के सजीव
प्रसारण के माध्यम और फोन द्वारा पुलिस को गाइड कर रहे थे।
18 जून का दिन था लगभग
4 बज रहे थे। पिछले तीन
दिनों से जारी सिर्फ एक डकैत और लगभग 400 पुलिसकर्मियों के बीच भीषण मुठभेड़ का अंत होने वाला था। दस्यु घनश्याम केवट शाम
के लगभग 4 बजते ही चीते की फूर्ती
की तरह कमरे से भागा। उसने कमरे का दरवाजा खोलते हुए छत पर चढ़कर नीचे लम्बी छलांग
लगाई और गांव के पीछे जंगल की ओर भागा। चूंकि पुलिस ने पूरे इलाके को अपने घेरे
में ले लिया था सो दस्यु घनश्याम जिस ओर भागा वहां भी खाकी की कई टुकड़ियां तैनात
थीं। घनश्याम को जंगल की ओर भागते देख पुलिस ने ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार शुरू कर
दी। लगभग 45 मिनट बाद जब फायरिंग बंद
हुई और सन्नाटा छा गया तो डकैत घनश्याम की तलाश शुरू की गई। तलाशी के दौरान
गोलियों से छलनी घनश्याम की लाश खाकी को बरामद हुई
घनश्याम केवट को
मारकर भले ही खाकी ने उस समय खुद की पीठ थपथपाई हो लेकिन जिस तरह से एक अकेले डकैत
ने यूपी पुलिस से तीन दिन तक टक्कर ली उसको याद करके आज भी लोग दस्यु घनश्याम केवट
का जिक्र करते हुए रोमांचित हो जाते हैं। तो वहीँ आज भी पुलिस की इस मुठभेड़ को
लेकर जमकर आलोचना होती है यह कहते हुए कि सीधी मुठभेड़ ने यूपी पुलिस की पोल खोल कर
रख दी थी वो भी एक अकेले डकैत के ने। बहरहाल जमौली की वादियों में आज भी घनश्याम
और पुलिस की इस ऐतिहासिक मुठभेड़ की गूंज सुनाई पड़ती है
उस गांव में आज
भी गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती है, आज भी खौफनाक
मंजर याद लोग कर सहम जाते हैं इलाकाई लोग गोलियों के निशां बयां करते हैं खाकी की
मजबूरी कहें या हताशा कि उस डकैत को मारने के लिए पूरे गांव में आग लगा दी गई और
ग्रामीणों के आशियाने जलाकर खाक कर दिए गए। खैर आप डाकू घनश्याम केवट के बारे में
क्या सोंचते हैं हमें कमेंट में जरूर बताएं।
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